लखनऊ में मारे गए संदिग्ध आईएसआईएस आतंकी सैफुल्ला के पिता सरताज एक आम आदमी हैं. वह कानपुर की चमड़ा इंडस्ट्री में काम करते हैं. लेकिन मंगलवार को उनकी शख्सियत आम से खास हो गई- यह बदलाव हर उस चीज की निशानी थी जिसके लिए भारतीय इस्लाम और भारतीय मुस्लिम जाने जाते हैं.
अपने सबसे ज्यादा पढ़े-लिखे बेटे सैफुल्ला के मारे जाने की खौफनाक खबर मिलने के बाद उन्होंने उसकी लाश लेने से इनकार कर दिया.
‘जो अपने देश का नहीं हुआ वो हमारा क्या होगा’ उन्होंने भरभराती आवाज में कहा.
सरताज एक भारतीय मुसलमान का चेहरा हैं. कानपुर के एक सामान्य से घर में रहने वाला सरताज और उनका परिवार मेहनत कर रोटी, कपड़ा और मकान की जरूरी सहूलियत जुटाते हैं.
सैफुल्ला ने बीकॉम करते हुए पढ़ाई छोड़ी थी. उससे परिवार को उम्मीदें थीं. लेकिन वह उन अंधेरी गलियों में भटक गया जहां मजहब के नाम का इस्तेमाल उस जैसे नौजवानों को लुभाने के लिए किया जाता है.
सैफुल्ला के एक आम लड़के से एक अपराधी में बदलने की दास्तान के कई सबूत दिखाई पड़ते हैं. उसे हर मोड़ पर पिता और भाई ने रोकने और आम जिंदगी में लौटा लाने की भरसक कोशिश की, लेकिन वे कामयाब न हो सके.
असल में सैफुल्ला की कहानी उस ट्रेंड का इशारा करती हैं जो धीरे-धीरे हमारे मुस्लिम परिवारों में पसर रहा है. भारत की खुफिया एजेंसियों को ऐसे कई घटनाएं दिखी हैं जहां बेरोजगार और पढ़े लिखे मुस्लिम युवा इस्लामिक आतंकवाद की साइबर दुनिया में फंस गए और अपनी शख्सियत से बड़ा कुछ और हासिल करने के सपनों में गिरफ्त में आते चले गए.
सैफुल्ला को तेलंगाना पुलिस एटीएस की खास टीम ने ढूंढ निकाला. उज्जैन ट्रेन बम धमाके के बाद तेलंगाना पुलिस ने एमपी पुलिस को इस ग्रुप के दो और सदस्यों के बारे में बताया और उन्हें पकड़ लिया गया. आगे की कार्रवाई में यूपी एटीएस को भी सूचना मिल गई और कानपुर में भी दो गिरफ्तारियां की गईं. सैफुल्ला को लखनऊ के ठाकुरगंज में घेर लिया गया. ठाकुरजंग शहर का पुराना इलाका है और यहां की जनसंख्या मिलीजुली है.
सैफुल्ला के अपराध में शामिल होने की पुष्टि और सरेंडर से इनकार के बाद ही एटीएस कमांडो के द्वारा उसे मार गिराया गया. पहले के कई ऑपरेशनों में अपनी रवैए को लेकर बदनाम रही यूपी पुलिस ने इस बार कोई गलती नहीं की. देश के सबसे बेहतर आईपीएस अधिकारियों में एक (जावीद अहमद) के नेतृत्व वाली राज्य पुलिस ने सैफुल्ला से सरेंडर कराने की हर कोशिश की. आखिरकार उसे मार गिराया गया.
सैफुल्ला और उसके साथियों के रेडिकलाइजेशन की पूरी दास्तान में सरताज का अपने बेटे को यूं खुद से अलग करना एक असाधारण घटना है. बेटे की मौत का दुख होने के बावजूद सरताज और उनके परिवार उसके ‘गद्दार’ होने की बात को गले से उतार नहीं सका. सैफुल्ला के इस अपराध में शामिल होने के सबूत सामने आने के साथ ही परिवार ने जाहिर कर दिया कि वह उसके चुने गए रास्ते के कितने खिलाफ हैं.
इसमें कोई शक नहीं है कि सरताज अपने बेटे से किसी और पिता से कम प्यार नहीं करते थे. फिर भी उन्होंने अपने बेटे को इसलिए ठुकरा दिया क्योंकि वह भारत के एक सच्चे मुसलमान के उसूलों के खिलाफ था. भारतीय इस्लाम के ये उसूल सीरिया और इराक में सिखाए जा रहे इस्लाम के जहरीले सबकों से बिल्कुल अलग हैं.