पश्चिमी उत्तर प्रदेश के वोटर्स इस बार तय करेंगे प्रदेश का राजनीतिक समीकरण। यूपी में पहले दौर में इसी इलाके में वोट पड़ने हैं। इस इलाके में जाटों की संख्या काफी अच्छी है और साथ ही मूले जाट भी इसी इलाके में सबसे ज्यादा हैं। मूले जाट यानि मुस्लिम जाट। एक तरफ जहां मूले जाटों को जहां अखिलेश-राहुल का साथ पसंद आ रहा है वहीं हिंदू जाटों ने अपने पत्ते नहीं खोले हैं। अभी के हालात देखकर यह कहा जा सकता है कि वेस्ट यूपी का जाट समुदाय इस बार बंटा हुआ नजर आ रहा है।
2014 के लोकसभा चुनाव में इस समुदाय के लोगों ने बड़ी संख्या में बीजेपी को वोट दिया था। उस वक्त मुजफ्फरनगर में हुए दंगों के कारण हिंदू वोटों का बड़े पैमाने पर ध्रुवीकरण हुआ था। दिल्ली से लेकर यूपी के इन इलाकों में मुजफ्फरनगर की आग ही फैली थी जिससे बीजेपी को जबर्दस्त लाभ हुआ था।इस बार इस समुदाय के कई लोग अजित सिंह की अगुवाई वाली पार्टी राष्ट्रीय लोक दल (आरएलडी) के समर्थन की बात दबी जबान कह रहे हैं।
हालांकि मेरठ, बागपत, मुजफ्फरनगर और पश्चिमी उत्तर प्रदेश के बाकी हिस्सों में रहने वाले जाटों के एक बड़े हिस्से का भरोसा अभी तक बीजेपी या यूं कहिए नरेंद्र मोदी पर कायम है। लेकिन बातचीत में उत्साह कम नजर आता है। अजित सिंह कांग्रेस और समाजवादी पार्टी के गठबंधन में नहीं गए, ऐसे में उनकी रणनीति सरकार बनने पर सत्ताधारी पार्टी के साथ जाने की हो सकती है। लेकिन फिलहाल वो इन सीटों पर बीजेपी का खेल बिगाड़ने में जुटे हैं, क्योंकि ऐसा माना जाता है कि इन सीटों पर बीजेपी का ही दबदबा है ।
अजित सिंह पिछला लोकसभा चुनाव बागपत से हार गए थे। लेकिन इस बार उनकी पार्टी के लिए संकेत ठीक मिल रहे हैं। एक तरफ जहां बीजेपी इन इलाकों के गुर्जरों के साथ के लिए अवतार सिंह भड़ाना के जरिए लोगों के बीच पैठ बना रही है वहीं अजित सिंह ने अवतार सिहं के भाई करतार सिंह भड़ाना को बागपत से उम्मीदवार बना दिया है। ऐसे में वोटों का बंटवारा केंद्र की सत्ताधारी पार्टी बीजेपी के लिए चिंता की बात है।
हरियाणा में हुए जाट आंदोलन और उसके बाद सरकार के रवैये से पनपी नाराजगी भी इस इलाके के जाटों में देखी जा रही है। ऐसे में अगर यहां जाटों का वोट बंटा तो बीजेपी के लिए मुश्किल हो सकती है । गुर्जरों के वोट बंटने के पूरे पूरे आसार नजर आ रहे हैं।