बिहार के मौजूदा हालात का गुनहगार कौन है, सांप्रदायिकता की आग में झुलसते बिहार के 7 जिलों में कम्यूनिकेशन के माध्यम पर अघोषित आपातकाल लगा हो तो गुनहगार कौन है और बिहार से सिर्फ एक ही खबर छन कर आ रही हो राजगीर में मुखिया की पार्टी अध्यक्ष पद पर ताजपोशी तो गुनहगार कौन है।
बिहार के नीरो, नीतीश कुमार की ताजपोशी हो गई। आधिकारिक तौर पर वे JDU के मुखिया चुन लिए गए। भले ही शरद यादव के कलेजे पर सांप लोट रहा हो लेकिन मंच पर उनकी तारीफ में कसीदे पढ़ना और जिम्मेदारी सौंपने की औपचारिकता पूरी करना उनकी मजबूरी रही होगी। लेकिन आज हम इस राजनीति की बजाए बिहार के हालात पर एक बार फिर बात करेंगे।
पिछले 10 दिनों से सांप्रदायिकता की आग में झुलसते बिहार की सुध जब नेताओँ ने नहीं ली, मीडिया ने भी नहीं ली तब मीडिया सरकार ने आपके लिए एक रिपोर्ट पेश की। आपको बताया कि बिहार के हालात ठीक नहीं है और मीडिया में खबर नहीं दिखाए जाने की कुछ कहानी हो सकती है। मामला सांप्रदायिकता की आग में ज्यादा न झुलस जाए इसके लिए खबरों को जिम्मेदारी से पेश तो किया जाना चाहिए लेकिन खबर दबा दी जाए और गलत तरीके से पेश की जाए यह तो सिर्फ नीरो नीतीश कुमार के ही राज में हो सकता है। आपको याद ही होगा कुछ साल पहले नीतीश कुमार और मीडिया के गठजोड़ पर जस्टिस काटजू ने क्या बयान दिया था। खैर वो बात भी फिर कभी।
आज हम बानगी के तौर पर चर्चा सुगौली की करते हैँ। सुगौली पूर्वी चंपारण जिले का एक छोटा सा कस्बा है, दुर्गा पूजा के बाद वहां मूर्ति विसर्जन के दौरान जुलूस पर पेट्रोल बम फेंके गए, गोलियां दागी गई और धारदार हथियार से हमला किया गया। मामला बिगड़ गया तो पहले धारा 144 और बाद में कर्फ्यू की मुनादी करवा दी गई। मूर्ति विसर्जन से पहले तनाव हो चुका था लिहाजा जिले के एसपी और डीएम पहले से ही डेरा डाले हुए थे, जुलूस के गुजरने का रास्ता थाने के करीब से था जाहिर है पुलिस फोर्स भी तैनात थी लेकिन बावजूद इसके घटना घटी।
मामला बिगड़ गया, भीड़ को तीतर-बितर किया गया, कुछ प्रशासनिक अधिकारियों समेत एक दर्जन से ज्यादा लोगों को चोटें आईं, कुछ की हालत नाजुक हुई तो पटना रेफर भी किया गया। लेकिन थोड़ी देऱ के बाद ऐसा क्या हुआ कि पुलिस ने सुगौली बाजार के लोगों को उनके दुकानों, घरों से खींच कर पीटा और हवालात में डाल दिया।
अगर हम इलाके के सांसद संजय जयसवाल की मानें तो विसर्जन जुलूस शांतिपूर्ण था, और उसपर हमला हुआ। साफ है कि एक समुदाय को भड़काने के लिए दूसरे समुदाय ने हरकत की और मामला बिगड़ा। जाहिर है यह पूरी तरह से प्रशासन की लापरवाही और विफलता है। आखिर इस छोटे से कस्बे में पेट्रोल बम और भारी तादात में हथियार कैसे पहुंच गए।
घटना के बाद सुगौली के अमीरखा टोला से (जहां जुलूस पर हमला बोला गया) एक दर्जन से ज्यादा संदिग्धों की हथियार और पेट्रोल बम के साथ गिरफ्तारी हुई। कई लोगों के छतों पर भारी मात्रा में पत्थर पाए गए। लेकिन इसके बाद अचानक कस्बे के कुछ घरों और दुकानों से निर्दोष और कम उम्र लड़कों को पीटते हुए पुलिस थाने ले गई।
एक पुलिस अधिकारी ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि उपर से आदेश स्पष्ट था कि दोनों समुदाय से बराबर संख्या में गिरफ्तारी होनी चाहिए। सुगौली से सटे हरसिद्धी प्रखंड से इस मामले के कई संदिग्धों को गांवलालों ने पुलिस के हवाले किया। गिरफ्तार संदिग्धों के पास देसी बम भी िमले। इतना ही नहीं पुलिस की नजर में इस घटना का मास्टरमाइंड एक वार्ड के पार्षद का पति है जिसे पहले पुलिस ने बम के साथ गिरफ्तार किया तीन दिन बाद रिहा कर दिया।
यह तो घटना के हालात हैं। अब देखिए इस मामले पर मीडिया की मौजूदगी औऱ कारगुजारी। पहले लगा कि शुरू में मीिडया ने खबरें नहीं बताकर संवेदनशीलता का परिचय दिया हो शायद, लेकिन बाद में जब खबर आधी-अधूरी और गलत बतायी जाने लगी तो संदेह पैदा हुआ। घायलों और गंभीर रूप से घायलों की सही तादात अभी तक नहीं मालूम। गिरफ्तार लोगों की सही संख्या नहीं बताई गई और न ही यह बताया गया कि किन किन धाराओँ में गिरफ्तारी हुई है। जिन बेगूनाह और कम उम्र के लड़कों को पीटा गया और उनको जेल भेज दिया गया उनका कोई जिक्र नहीं। जिस अपराधी के घर से जिंदा देसी बम, पेट्रोल बम और धारदार हथियार बरामद हुए उनका कोई ज़िक्र नहीं। बरामद पेट्रोलबम की संख्या सही नहीं। घटना के बाद से धारा 144 लागू हुआ और प्रशासन ने कर्फ्यू की मुनादी करवा दी ऐसा क्यों हुआ और सच क्या था। बाजार खबर लिखे जाने तक पूरी तरह से बंद है लेकिन कुछेक अखबारों ने लिख दिया कि बाजार खुल गया है। जाहिर यह इन खबरों को छोटे से कस्बे का पत्रकार क्या दबा देगा जबतक मामला उपर से नहीं दबाया जाता हो।
इतना ही नहीं घटना के दिन 50 से ज्यादा की संख्या में एक पूरा समुदाय विसर्जन का विरोध करते हुए सुगौली-मोतिहारी औऱ सुगौली-रक्सौल रेलखंड की पटरियां उखाड़ने जा जुटे थे। ऐसे में स्थानीय लोगों के विरोध से ऐसा नहीं हुआ अन्यथा कोई बड़ा हादसा हो सकता था।
सारी मुस्तैदी के बाद घटना घटती है तो आखिर गुनहगार कौन है, एक छोटे से शांतिप्रिय कस्बे में भारी तादात में पेट्रोल बम बरामद होता है तो गुनहगार कौन है। पुलिस निर्दोष लोगों को पकड़ती है तो गुनहगार कौन है, मीडिया मौन है तो गुनहगार कौन है, नीतीश की सुशासन की बंसी बज रही है तो गुनहगार कौन है। सवाल जहां से शुरु हुआ वहीं खड़ा है आखिर गुनहगार कौन है।