बकरीद के दिन बांग्लादेश में सड़कों पर खून की नदी वाली तस्वीरें सच्ची थीं। खुद बांग्लादेश के मीडिया ने उसे रिपोर्ट किया। बीबीसी ने रिपोर्ट किया। UN प्रतिनिधि ने भी ट्वीट किया। इसके कई वीडियो भी youtube पर उपलब्ध हैं।
अब कुछ लोग ज़रूर फोटोशॉप द्वारा इसे झुठलाने की कोशिश कर रहे हैं। जिस भी व्यक्ति के भीतर ज़रा भी दया, ममता, संवेदनशीलता और इंसानियत होगी, वह मासूम जीवों की हत्या के ख़िलाफ़ आगे आएगा, न कि उसे ढंकने-छिपाने या जस्टिफाई करने का प्रयास करेगा।
हम सिर्फ़ बकरीद पर ही मासूम जीवों की नृशंस हत्या की निंदा नहीं करते हैं, बल्कि नवरात्र समेत हिन्दू त्योहारों पर भी बलि रोकने की अपील करते हैं।
उसे ईश्वर कहें या अल्लाह, जिसने हमें जिंदगी बख्शी है, उसी ने उन मासूम पशु-पक्षियों को भी जीने का अधिकार दिया है। अगर हम किसी को ज़िन्दगी दे नहीं सकते तो उसे छीनने का भी हमें अधिकार नहीं है।
मुझे यह कहते हुए दुःख हो रहा है कि सीरिया में आतंकवादियों ने बेगुनाह आदमियों की हत्या की। बाक़ी दुनिया में धर्मात्मा लोगों ने बेगुनाह जानवरों की हत्या की। सोचकर देखिये, बेगुनाह जीव-जंतुओं के लिए हम भी ISIS से कम ख़तरनाक हैं क्या?
माफ़ कीजिए, धर्म अगर हममें दया-ममता नहीं जगा सकता, तो वह अधर्म है!