दो साल पहले पाकिस्तान जाकर आतंकी संगठन लश्कर ए तैयबा के चीफ़ हाफिज़ सईद से मिलने वाले विवादास्पद पत्रकार वेद प्रताप वैदिक ने नोटबंदी के मुद्दे पर सीधा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर निशाना साधा है। “नया इंडिया” में छपे अपने लेख में उन्होंने पूछा है कि “क्या मोदी खुद शपथ लेकर कह सकते हैं कि वे काले धन का धड़ल्ले से उपयोग नहीं करते हैं?”
इतना ही नहीं, अपने लेख में नोटबंदी की तुलना इंदिरा गांधी की इमरजेंसी से करते हुए वे प्रधानमंत्री मोदी के प्रति काफी सख्त दिखाई देते हैं- “इंदिरा गांधी ने 1975 में जब आपातकाल थोपा था, तब आचार्य विनोबा भावे ने उसे ‘अनुशासन पर्व’ कहा था, अब नरेंद्र मोदी ने देश में ‘अराजकता पर्व’ थोप दिया है। 15 दिन होने आए, लेकिन देश में आर्थिक अराजकता फैली हुई है। हालात काबू में ही नहीं आ रहे हैं। मोदी बार-बार भावुक हो रहे हैं। इंदिरा गांधी की तरह विरोधियों पर बरस रहे हैं। ईश्वर की कृपा है कि उन्हें वे अंदर नहीं कर रहे हैं। उन पर वे भ्रष्टाचार और काले धन के पोषक होने का आरोप लगा रहे हैं। मानो कि वे खुद दूध के धुले हुए हों।”
वेद प्रताप वैदिक ने अपने लेख में कहा है कि मोदी को सिर्फ़ सुनाने की आदत है, सुनने की नहीं, इसीलिए वे संसद में बयान नहीं दे रहे। उन्होंने लिखा है- “बेचारे प्रधानमंत्री की तो घिग्घी बंध गई है। यह मोदी-मुद्रा है। यदि संसद में भी उन्होंने आंसू टपका दिए तो क्या होगा? संसद में आकर वे क्या बोलेंगे? संसद में बोलने वाले को खरी-खरी सुननी भी पड़ती है। मोदी को सुनाने की आदत है, सुनने की नहीं। इसीलिए वे आजकल सभाओं में बोलकर खुद को खुश करते रहते हैं। भाजपा के संसदीय दल की बैठक में भी उन्होंने यही किया। जो कुछ सामने आया है, उससे यही पता चला है कि सबने हां में हां मिला दी। किसी ने चूं भी नहीं की।”
नोटबंदी के फैसले पर कई गंभीर सवाल उठाते हुए वैदिक ने लिखा है- “आपातकाल की तरह सभी मंत्री, सांसद और नौकरशाह अपनी-अपनी नौकरियां बचाने में लगे हुए हैं। नोटबंदी को पूरे संसदीय दल ने ‘महान’ और ‘क्रांतिकारी’ अभियान कहकर इसके समर्थन में प्रस्ताव पारित कर दिया। उसने आपातकाल में इंदिराजी के संसदीय दल की याद ताजा कर दी। किसी ने भी कतारों में दम तोड़ते लोगों, चौपट होती शादियों, बर्बाद होते किसानों, रातोंरात सफेद या सुनहरे होते काले धन की चर्चा भी नहीं की। यह भी नहीं बताया कि नए नोटों में ऐसा क्या है, जो वे काले नहीं हो जाएंगे? इस ‘नए काले धन’ से यह पहले से लड़खड़ाई हुई सरकार कैसे निपटेगी? दो हजार का नोट दुगुना काला धन बनाएगा। उसके नकली नोट भी पकड़े गए हैं। मारे गए आतंकवादियों की जेब से नकली नहीं, असली नए नोट निकले हैं।”
वेद प्रताप वैदिक का यह लेख इसलिए सुर्खियां बटोर रहा है, क्योंकि वे बाबा रामदेव के निकट सहयोगी माने जाते हैं। वही बाबा रामदेव जो बड़े नोटों को बंद करने के प्रबल समर्थक रहे हैं और जिन्होंने इस नोटबंदी का खुलकर समर्थन किया है। अपने इस ताज़ा लेख में वेद प्रताप वैदिक नरेंद्र मोदी और उनके फैसले के प्रति बेहद तल्ख दिखाई दे रहे हैं। बस इतनी मेहरबानी कर दी है कि उन्होंने विपक्ष के इस आरोप को ख़ारिज कर दिया है कि मोदी ने यह कदम पूंजीपतियों को फायदा पहुंचाने के लिए उठाया है। वे लिखते हैं- “इसमें शक नहीं कि मोदी की नोटबंदी ने विरोधियों के हौसले बुलंद कर दिए हैं लेकिन उनके इस आरोप पर जनता बिल्कुल भी भरोसा नहीं कर रही है कि यह कदम मोदी ने पूंजीपतियों या अपनी पार्टी या अपना कोई फायदा करने के लिए उठाया है। इसीलिए सरकारी अराजकता के जवाब में जनता की अराजकता नहीं हो रही है।”
वेद प्रताप वैदिक पिछली बार तब सुर्खियों में रहे थे, जब उन्होंने पाकिस्तान में आतंकवादियों के सरगना हाफ़िज़ सईद से मुलाकात की थी। इस मुद्दे पर संसद में भी काफी हंगामा मचा था और कांग्रेस के सदस्यों ने उनकी गिरफ्तारी की मांग की थी। मज़ेदार बात यह है कि तब वेद प्रताप वैदिक को मोदी का समर्थक समझा जा रहा था और कांग्रेस उन्हें सरकार का दूत बता रही थी। लेकिन राजनीति में कुछ भी स्थिर नहीं रहता, इसलिए वेद प्रताप वैदिक भी स्थिर नहीं रहे। ‘मीडिया सरकार’ को सूत्रों से जानकारी मिली है कि आजकल समाजवादी पार्टी के सुप्रीमो मुलायम सिंह यादव से उनकी गाढ़ी छनने लगी है और हो सकता है कि ताज़ा लेख उन्होंने मुलायम सिंह यादव के इशारे पर लिखा हो, जो मोदी सरकार के नोटबंदी के फ़ैसले के विरोध में हैंं।
हाल-फिलहाल उन्हें आगरा-लखनऊ एक्सप्रेसवे के उद्घाटन के मौके पर भी सपा सुप्रीमो मुलायम सिंह और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के साथ मंच पर देखा गया था। उनकी इस उपस्थिति को आप इस ख़बर के साथ लगी दो तस्वीरों में देख सकते हैं।