हिन्दुत्ववादी संगठन शायद इसे लव जेहाद कहें और तैमूर लंग का इतिहास बांचते हुए सैफ अली ख़ान औऱ करीना कपूर की कड़ी निंदा करें। इसी तरह, मुमकिन है कि कम्युनिस्ट और कांग्रेसी इसे व्यक्तिगत आज़ादी से जोड़कर उसका सम्मान करने की दुहाई दें। लेकिन हमारे दिमाग में यह सवाल कौंध रहा है कि आज अगर पृथ्वीराज कपूर जीवित होते, तो उन्हें कैसा लगता, जब पता चलता कि उनके खानदान में इतिहास द्वारा प्रमाणित आक्रमणकारी, लुटेरे और कातिल तैमूर लंग के नाम पर तैमूर अली ख़ान पैदा हो गया है?
मुमकिन है कि वह हिन्दुत्ववादी संगठनों की तरह से नहीं सोचते, पर कांग्रेसियों और कम्युनिस्टों की तरह सोचते, इस बात की भी गारंटी नहीं। सैफ अली ख़ान और करीना कपूर द्वारा अपने बच्चे के ऐसे वाहियात नामकरण पर मुमकिन है कि उनका ख़ून खौल उठता या फिर वे शर्म से डूबकर मर जाते। अगर यह दोनों काम वे नहीं कर पाते, तो कम से कम कई दिनों-महीनों तक घर से निकलना, लोगों से मिलना-जुलना तो पक्का बंद कर देते, ताकि तैमूर नाम से जुड़े ताने सुनने से बच सकें।
तैमूर लंग के बारे में बचपन में हमने यही पढ़ा था कि वह एक मंगोलियन लुटेरा था, जिसने साम्राज्य विस्तार के चक्कर में भारत में भी काफी कत्लेआम मचाया और हज़ारों बेगुनाह लोगों, जिनमें हिन्दू-मुसलमान सभी शामिल थे, उनको मार डाला। इसलिए सवाल हिन्दू-मुसलमान का है ही नहीं। सवाल है- सोच का। हमारी संस्कृति में चोरों, लुटेरों, हत्यारों, आततायियों, पापियों, कातिलों, राक्षसों के नाम पर लोग अपने बच्चों के नाम नहीं रखते हैं।
हमने आज तक नहीं सुना कि किसी ने अपने बच्चों के नाम रावण, कंस, पूतना या सूर्पनखा रखा हो, जबकि अगर कोई कुतर्क ही करना चाहे तो इन सबकी भी कुछ न कुछ ख़ूबियां बता सकता है। मसलन रावण काफी विद्वान था। इसके बावजूद अगर कोई कहे कि मैं अपने बेटे का नाम रावण रखूंगा, तो हमारी संस्कृति में उसे हंसी का पात्र बनना पड़ेगा। इसी तरह, अगर कोई कहे कि सूर्पनखा को सिर्फ़ रावण की बहन होने की वजह से बदनाम किया गया और उल्टे लक्ष्मण ने उसपर अत्याचार किया, इसलिए मैं अपनी बेटी का नाम सूर्पनखा रखूंगा, तो उसे भी हंसी का पात्र बनना पड़ेगा।
हमारे यहां यह हज़ारों साल की परंपरा है, जिसके तहत हम समाज के बुरे तत्वों के नाम पर अपने बच्चों के नाम नहीं रखते। इसलिए हिन्दू नामों के साथ ऐसे विवाद कम ही पैदा हो पाते हैं। विवाद अक्सर पैदा हो रहे हैं मुस्लिम नामों के साथ। और पैदा किए जाते हैं फ़र्ज़ी सेक्युलर और सोकॉल्ड प्रोग्रेसिव लोगों के द्वारा, जो वास्तव में अज्ञान के अंधकार में डूबे हुए हैं और मुसलमानों को बदनाम करना चाहते हैं।
ख़ुद वह इतिहासकार, जिसने आरएसएस की तुलना आतंकवादी संगठन आइसिस से की- इरफ़ान हबीब भी बता रहे हैं कि तैमूर लंग ने सिर्फ़ हिन्दुओँ को नहीं, भारतीय मुसलमानों का भी कत्लेआम किया। यह जानने के बाद, हिन्दुओँ की बात तो छोड़ दीजिए, कौन भारतीय मुसलमान होगा, जो अपने बच्चों के नाम तैमूर लंग के नाम पर रखना चाहेगा?
इसके बावजूद राजनीतिक कारणों से विवाद पैदा करने के लिए और मुसलमानों को बदनाम करने के लिए उन्हीं के कुछ ठेकेदार तरह-तरह के शिगूफे छेड़ते रहते हैं। हाल ही में, जब दिल्ली में औरंगज़ेब के नाम की सड़क का नाम बदलकर एपीजे अब्दुल कलाम मार्ग किया गया, तब भी कुछ लोग नाराज़ हो गए। हमें तब भी हैरानी हुई थी कि इस देश में वे कौन लोग हैं, जिन्हें हम सबके प्रिय डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम से ज़्यादा सुहाना नाम औरंगजेब का लगता है?
इसी तरह, अफ़ज़ल गुरू, याकूब मेमन और वुरहान वानी जैसों को हीरो बनाने की कोशिशें भी की जा रही हैं। ये जो भी लोग हैं, वे न तो राष्ट्र के हितैषी हो सकते हैं, न मुसलमानों के। आतंकवादियों के साथ खड़े होने वाले लोग तो इंसान कहे जाने के भी हकदार नहीं। इसीलिए जब वे नारे लगाते हैं कि “तुम कितने अफ़ज़ल मारोगे, तुम कितने याकूब मारोगे, तुम कितने वुरहान मारोगे… घर घर से अफ़ज़ल निकलेगा, याकूब निकलेगा, वुरहान निकलेगा…” तो हमें घिन आती है। ऐसे लोगों से देश का कुछ बिगड़े न बिगड़े, हमारे मुसलमान भाइयों-बहनों का बहुत कुछ बिगड़ जाता है। उनकी छवि ख़राब होती है और उनके खिलाफ प्रोपगंडा करने में जुटे लोगों को मसाला मिल जाता है।
ऐसे माहौल में, जबकि वॉलीवुड के तीनों प्रमुख ख़ान आमिर ख़ान, शाहरुख खान और सलमान ख़ान पहले ही अपनी विवादास्पद टिप्पणियों से देश के बड़े तबके में बदनामी झेल रहे हैं, अब चौथे ख़ान सैफ़ अली ख़ान ने भी अपने बेटे का नाम तैमूर रखकर उन्हें चिढ़ा दिया है। हमारा मानना है कि समाज के ज़िम्मेदार लोगों को कोई भी काम सोच-समझकर करना चाहिए। इस लिहाज से इसमें कोई शक नहीं कि सैफ अली ख़ान और करीना कपूर ने अपने बेटे का नाम तैमूर रखकर भारी नासमझी का परिचय दिया है। देर-सवेर उन्हें इसका अहसास ज़रूर होगा।