नोटबंदी और आतंकवाद के संबंध को लेकर एक नई पॉलिटिक्स शुरू हो गई है। प्रधानमंत्री मोदी ने कहा था कि काले धन और आतंकवाद पर चोट करने के इरादे से नोटबंदी लाई जा रही है, लेकिन जम्मू कश्मीर में आतंकवादी घटनाएं लगातार जारी रहने से अब यह सवाल उठने लगा है कि क्या सचमुच नोटबंदी से आतंकवाद पर लगाम लग सकती है या फिर यह कोरा दावा है?
पिछले तीन दिन के भीतर कश्मीर के बांदीपोरा में आतंकवादियों से मुठभेड़ की दो बड़ी घटनाएं हुई हैं, जिनमें चार आतंकवादी मारे गए हैं। साथ ही एक जवान भी शहीद हुआ है। ख़ास बात यह है कि 22 नवंबर के मुठभेड़ में मारे गए दो आतंकवादियों के पास से हथियारों के अलावा दो-दो हज़ार के नए नोट भी बरामद हुए हैं। इससे यह सवाल उठ खड़ा हुआ है कि आतंकवादियों के पास नए नोट कहां से आए? और अगर नोटबंदी के दो हफ्ते के भीतर नए नोटों की खेप उन तक पहुंचने लगी है, तो फिर उनकी आर्थिक रीढ़ किस तरह तोड़ी जाएगी?
विपक्ष के कई नेता पहले से ही सरकार के इस दावे पर सवाल उठाते रहे हैं कि नोटबंदी से आतंकवाद नहीं रुकेगा। सीपीएम नेता सीताराम येचुरी ने राज्यसभा में दिए अपने भाषण में कहा था कि आतंकवादी नोटों की गठरी बांधकर नहीं घूमते, बल्कि आजकल इलेक्ट्रॉनिक ट्रांसफर के ज़रिए उन्हें फंड मुहैया कराया जा रहा है। पूर्व राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार शिवशंकर मेनन ने भी कहा था कि आतंकवादी नए नोटों की भी नकल कर लेंगे।
नोटबंदी के विरोधियों का यह भी कहना है कि नोटबंदी के बाद आतंकवाद रुकेगा नहीं, बल्कि आतंकवादी और उनके आका इसकी काट ढूंढ़ लेंगे। मुमकिन है कि आतंकवाद अपना स्वरूप बदल ले। आख़िर बेरोज़गार और सिस्टम से हताश नौजवानों को बरगलाना तो आतंकवादियों के लिए फिर भी आसान रहेगा।
हालांकि सीताराम येचुरी और शिवशंकर मेनन जैसे नेता और एक्स ब्यूरोक्रैट जो भी कहें, लेकिन तस्वीर का दूसरा पहलू यह भी है कि नोटबंदी के बाद से कश्मीर में पथराव की घटनाएं लगभग रुक गई हैं। अब कोई इसे नोटबंदी का नतीजा माने या न माने।