सिर्फ़ कहानी नहीं, सचबयानी है ‘धोनी द अनटोल्ड स्टोरी’
क्रिकेट अगर धर्म है, तो ये कहना गलत नहीं होगा कि धोनी इसके भगवान हैं। पिछले हफ्ते रिलीज हुई फिल्म धोनी में परदे के आगे भले सुशांत सिंह और नीरज पांडे दिखाई देते हैं, लेकिन इसके असल किरदार तो महेंद्र सिंह धोनी ही हैं।
फिल्म शुरू होती है 2011 के विश्व कप फाइनल के उन लम्हों से, जो हर क्रिकेटप्रेेमी के ज़ेहन में छपे हैं, जब धोनी ने अपनी शानदार पारी और साहसिक फैसलों से भारत को दूसरी बार विश्व विजेता के मुकाम तक पहुंचाया था। महेंद्र सिंह धोनी सिर्फ़ एक क्रिकेटर नहीं, बल्कि भारत की आने वाली पीढ़ियों के लिए एक प्रेरणा भी हैं।
इस फिल्म के जरिए नीरज पांडेय ने वह कहानी कही है, जिसे भारत के लोग हमेशा से जानना चाहते थे। फिल्म की स्टार कास्ट में कई ऐसे नाम हैं, जो उनके पसंदीदा कलाकार रहे हैं। चाहे वह धोनी के पिता का रोल निभाने वाले अनुपम खेर हों या अन्य।
फिल्म के एक दृश्य में पाकिस्तान के पूर्व राष्ट्रपति जनरल परवेज मुशर्रफ धोनी के खेल और उनके हेयर स्टाइल की तारीफ़ कर रहे हैं। इससे ज़ाहिर होता है कि धोनी ने न सिर्फ़ भारत के लोगों का दिल जीता है, बल्कि बाहर भी उनके लाखों-करोड़ों दीवाने हैं। वह सच्चे मायने में हमारे क्रिकेट इतिहास के हीरे हैं।
कई लोग फिल्म की आलोचना कर सकते हैं, जैसे वे धोनी की भी करते रहे होंगे, लेकिन यह वैसा ही है, जैसे चढ़ते हुए सूरज को दीया दिखाना। प्रियंका के साथ धोनी का रोमांस ठंडी हवा के झोंके की तरह फिल्म में आता है। दिशा पटनी (प्रियंका) ने फिल्म में काम भी बहुत अच्छा किया है।
नीरज की दूसरी फिल्मों की तरह इस फिल्म में भी सिनेमेटोग्राफी अच्छी है और इसमें स्पेशल इफैक्ट्स का इस्तेमाल बेहद ख़ूबसूरती के साथ किया गया है। पूरी फिल्म में सुशांत ने इतना बढ़िया काम किया है कि वे धोनी के किरदार में लोगों को पसंद आएंगे और लोग इस धोनी को एक भी पल के लिए मिस नहीं करना चाहेंगे। फिल्म के संवाद भी बहुत अच्छे हैं और इनमें हास्य-व्यंग्य का अच्छा पुट है, जो कि धोनी की पहचान है।
कुल मिलाकर यह सुशांत सिंह के करियर का अब तक का बेस्ट परफॉरमेंस है और मुझे यकीन है कि ख़ुद महेंद्र सिंह धोनी ने उनके काम को पसंद किया होगा। दिशा पटनी (प्रियंका) और कियारा आडवाणी (साक्षी) ने भी अपने-अपने रोल में अच्छा काम किया है। नीरज पांडेय ने एक बार फिर से साबित किया है कि वे न सिर्फ़ एक अलग किस्म के निर्देशक हैं, बल्कि धोनी की ही तरह एक बेहतरीन फिनिशर भी हैं।
निर्देशक ने धोनी के सफ़र को दिखाते हुए फिल्म में दोस्ती और प्यार की बेहतरीन छौक लगाई है, जो कई दृश्यों में दिल को छू जाती है। यह महज एक फिल्म नहीं, एक किस्म की प्रेरणा भी है, जो फिल्म देखने के बाद भी दर्शकों के दिलो-दिमाग पर छाई रहेगी। यह एक ऐसी फिल्म है, जिसे न सिर्फ़ क्रिकेट प्रेमियों को देखनी चाहिए, बल्कि उन्हें भी देखनी चाहिए, जो क्रिकेट को पसंद नहीं करते या जिनकी क्रिकेट में दिलचस्पी कम है। यह एक बेहद सामान्य आदमी के विशिष्ट बनने की कहानी है।
फिल्म थोड़ी छोटी हो सकती थी, क्योंकि यह तीन घंटे से भी अधिक लंबी हो गई है। इस वजह से इसके कई हिस्से, खासकर साक्षी और धोनी की प्रेमकहानी वाला हिस्सा उबाऊ हो गया है। अगर इसमें थो़ड़ी और कसावट होती, तो अधिक असरदार हो सकती थी।
फिल्म के गाने ठीक-ठाक हैं, हालांकि वे जब भी आते हैं, फिल्म की गति को धीमी करते हैं। एडिटिंग भी बहुत अच्छी नहीं कही जा सकती। फिल्म के संवाद आपको ज़रूर बार-बार फिल्म में खींचकर ले आते हैं। हालांकि फिल्म की व्यावसायिक सफलता का श्रेय जितना नीरज और सुशांत के अच्छे काम को नहीं जाता, उससे कहीं अधिक धोनी के ब्रैंड पावर को जाता है। बॉक्स ऑफिस पर इस फिल्म को जो भी कामयाबी मिली है, वह भारत के लोगों की तरफ़ से धोनी को एक उपहार जैसा है।
***3 स्टार्स फिल्म के लिए। इसके अलावा ½ स्टार और सुशांत के शानदार अभिनय के लिए।
(मनीष झा एक जाने-माने फिल्म समीक्षक हैं।)