आजाद भारत के इतिहास में पहली बार 1 फरवरी को पेश हुए बजट में राजनीतिक दलों के चंदे पर अंकुश लगाने और पारदर्शी बनाने के लिए नकद चंदे को 2,000 रुपये तक सीमित करने का प्रस्ताव पेश हुआ। इस प्रस्ताव के पेश होने के बाद से ही इसकी मंशा पर सवाल उठने लगे हैं। हालांकि यह पहला बजट है, जिसमें राजनीतिक फंडिंग में पारदर्शिता के मुद्दे को उठाया गया है और इस मामले में राजनीतिक पार्टियों को जवाबदेह बनाने की कोशिश की गई है। लेकिन कुछ सवालों के जवाब साफ नहीं है।
असोसिएशन फॉर डेमोक्रैटिक रिफॉर्म्स (ADR) ने राजनीतिक दलों को चंदा देने की व्यवस्था में सरकार के प्रस्तावित सुधार को ‘महत्वहीन’ करार दिया है क्योंकि ये अस्पष्ट हैं। संस्था के मुताबिक नकद चंदे को 2,000 रुपये तक सीमित करने का प्रस्ताव दरअसल जवाबदेही, खुलासा करने और राजनीतिक इच्छा के नजरिये से खामी वाला है। सभी राजनीतिक पार्टियां नकद में चंदा लेती हैं, बहुजन समाज पार्टी का तो १०० फीसदी चंदा नकद से ही आता है। संस्था ने सवाल उठाया है कि प्रस्ताव में यह साफ नहीं है कि कुल चंदे का कितना फीसदी नकद चंदे के तौर पर लिया जा सकता है। जब तक उसपर अंकुश नहीं लगेगा इन नियमों से कोई लाभ नहीं होने वाला।
एडीआर ने एक बयान जारी कर कहा है कि ‘बजट में राजनीतिक फंडिंग में पारदर्शिता और जवाबदेही का वादा किया गया है। हालांकि, इसमें इन चीजों का जवाब नहीं है कि इसे जमीनी स्तर पर किस तरह लागू किया जाएगा या क्या इसमें चुनाव आयोग और लॉ कमीशन ऑफ इंडिया की तरफ से सिफारिश किए गई सुधारों को लागू करने वादा किया गया है।’ संस्था के मुताबिक, बजट राजनीतिक पार्टियों की पारदर्शिता, डिसक्लोजर और पेनल्टी मुद्दे से निपटने में नाकाम रहा है।यह तीन मोर्चों पर दोषपूर्ण है: जवाबदेही, डिसक्लोजर और राजनीतिक इच्छाशक्ति।
एडीआर का साफ कहना है कि दंड के कारगर उपाय के बिना इस नियमों का कोई औचित्य नहीं है और इसमें इनकम की जांच-पड़ताल की भी बात नहीं कही गई है और पेनल्टी के असरदार उपायों के बिना रिफॉर्म अधूरा रहेगा। एडीआर ने कहा है, ‘जब तक राजनीतिक पार्टियों के खातों की जांच का काम कैग या चुनाव आयोग की तरफ से मंजूर संस्था को नहीं मिलता है, तब तक राजनीतिक पार्टियां अपनी घोषित इनकम सही नहीं बताएंगी।