जिस वक्त देश में वामपंथियों के नायक अपने मूल विचारों से च्युत होकर जेएनयू में कहीं भी ‘सू-सू’ करने की आज़ादी के लिए महिलाओं से उलझ रहे थे और आतंकवादियों के समर्थन में आंदोलन कर रहे थे, ऐसा लगता है कि करीब-करीब उसी वक्त वामपंथियों की नज़र में देश के सबसे बड़े खलनायक और दक्षिणपंथियों के सबसे बड़े नायक ने वामपंथी सोच और सियासत की पूरी की पूरी ज़मीन ही हड़प लेने का इरादा कर लिया था।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जिस चरणबद्ध तरीके से काले धन को ख़त्म करने के लिए कदम उठाए हैं और कहा है कि यह पूर्णविराम नहीं है, उससे एक बात साफ़ है कि अगर वे अपने स्टैंड पर कायम रहते हुए आगे बढ़ते चले जाएं, तो आने वाले दिनों में देश की राजनीति पूरी तरह से बदल सकती है। हमारी आज की राजनीति जातियों और संप्रदायों के संकीर्ण समीकरण बनाने-बिगाड़ने तक सिमटी हुई है, लेकिन मोदी का मास्टर स्ट्रोक अगर चल गया, तो यह अमीर-ग़रीब के शाश्वत वर्ग-संघर्ष पर केंद्रित हो जाएगी। मोदी शायद चाहते भी यही हैं। गोवा से गाज़ीपुर तक उनकी दहाड़ से यह स्पष्ट है।
ऐसा प्रतीत होता है कि आज के आम राजनीतिज्ञों से अलग मोदी एक बड़ी लाइन खींचना चाहते हैं। ऐसी बड़ी लाइन… वामपंथियों की भाषा में, जिसके एक तरफ़ बुर्जुआ वर्ग होगा, तो दूसरी तरफ सर्वहारा वर्ग। जिसके एक तरफ़ देश के अमीर होंगे, दूसरी तरफ़ ग़रीब होंगे। जिसके एक तरफ़ भ्रष्ट और काली कमाई के बादशाह होंगे, दूसरी तरफ़ देश के दबे-कुचले, शोषित और वंचित होंगे। देश के आम लोग समझ जाएंगे कि जिन लोगों ने जातियों और संप्रदायों के नाम पर हमें ठगा, उन्होंने हमारे लिए कुछ नहीं किया। मुख्य धारा से काटकर रखा, लड़वाया, मरवाया और अपनी राजनीति चमकाई व अनाप-शनाप दौलतें बनाईं।
उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में शायद इसका छोटा प्रयोग देखने को मिल भी सकता है। प्रधानमंत्री मोदी ने वहां गाज़ीपुर से अपने चुनावी अभियान की शुरुआत करते हुए सीधे तौर पर अमीर और ग़रीब के बीच के शाश्वत संघर्ष को मुद्दा बनाने की कोशिश की है। उन्होंने छाती ठोंककर कहा कि बात सिर्फ़ नोटबंदी तक नहीं रुकेगी, बेनामी और बेहिसाब संपत्तियों तक भी जाएगी। आज़ादी के बाद से सारे रिकॉर्ड खंगाले जाएंगे। काले पैसों से बनाई गई ज़मीनों, मकानों, सोने-चांदी सबका हिसाब लेगी सरकार।
प्रधानमंत्री की भाषा और शब्दों के चुनाव से स्पष्ट है कि वे मन ही मन कुछ ठान चुके हैं। गंगा में नोट बहाने वालों के लिए उन्होंने “पापी” जैसा बेहद कड़ा शब्द इस्तेमाल किया। कहा- “अरे पापियों, गंगा में नोट बहाने से भी तुम्हारे पाप नहीं धुलने वाले।“ मुझे नहीं लगता कि इससे पहले देश के किसी भी प्रधानमंत्री ने भ्रष्ट लोगों के लिए इतने कड़े शब्दों का इस्तेमाल किया होगा। इसी तरह उन्होंने अमीर और ग़रीब की लाइन खींचते हुए साफ़ तौर पर कहा कि मोदी कड़क चाय बनाता है। यह चाय ग़रीबों को अच्छी लगती है और अमीरों का जायका बिगाड़ देती है।
देखा जाए, तो उत्तर प्रदेश की राजनीति में अभी जितने भी सूरमा हैं, वे जातियों-संप्रदायों से ऊपर उठकर सोच ही नहीं पाते। वे सभी अलग-अलग जातियों-संप्रदायों का कॉकटेल बनाकर सत्ता की शराब पीना चाहते हैं। समाजवादी परिवारवादी कुनबा मुस्लिम-यादव समीकरण के सहारे बांस-कूद में हिस्सा ले रहा है, तो मायावती की मंडली मीम-भीम समीकरण बनाकर हाई जम्प लगाने का मंसूबा बांधे बैठी है। देश की सबसे पुरानी पार्टी कांग्रेस भी चुनाव जीतने के लिए ब्राह्मणों-मुसलमानों को ललचाने की सोच से ऊपर नहीं उठ पाई।
देश के दूसरे राज्यों में भी ऐसा ही हाल है। हाल-फिलहाल पिछले साल हमने बिहार में देखा, जहां इस अत्यंत पिछड़े राज्य में भी विकास कोई मुद्दा नहीं बन पाया और सारी लड़ाई जातियों और संप्रदायों के इर्द-गिर्द सिमटकर रह गई। ज़ाहिर तौर पर, देश में अगर ऐसी ही राजनीति चलती रही, तो यह देश की तरक्की के लिए भी घातक होगा और बीजेपी के लिए भी मुश्किलें बनी रहेंगी। ऐसे में प्रधानमंत्री का यह मास्टर स्ट्रोक सिर्फ़ काले धन और भ्रष्टाचार से लड़ने के लिए ही नहीं, बल्कि चुनाव में जातियों और संप्रदायों के खेल को भी ख़राब करने के लिए है।
आज देश में हर जाति-धर्म के ग़रीब लोग काले धन पर चोट को अपने हित में मान रहे हैं और अमीर लोग त्राहि-त्राहि कर रहे हैं। यहां तक कि धर्म के नाम पर जो ग़रीब मुसलमान अब तक मोदी के विरोध में चट्टान की तरह खड़े रहे हैं, वे भी काले धन के ख़िलाफ़ उठाए कदम का खुलकर समर्थन कर रहे हैं। यही हाल दलितों और तमाम हिन्दू जातियों के ग़रीबों का भी है। ज़ाहिर है कि काले धन के मुद्दे पर मोदी ने जो लड़ाई छेड़ी है, उसमें साझा हित के लिए तमाम जातियों और धर्मों के ग़रीब लोगों को एकजुट करने की पूरी क्षमता है।
इसलिए, उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव से ठीक पहले मोदी ने जो लड़ाई छेड़ी है, इसे 2019 के लोकसभा चुनाव से पहले वे किसी न किसी अंजाम तक ज़रूर पहुंचाना चाहेंगे। अकारण नहीं है कि मोदी के इस मास्टर स्ट्रोक से विपक्षी पार्टियों के तमाम सूरमाओं के हौसले पस्त हो गए हैं और बौखलाहट में वे जनता की परेशानियों के नाम पर काले धन के ख़िलाफ़ उठाए गए कदमों का विरोध कर रहे हैं।
आखिरी बात। काले धन के ख़िलाफ़ बढ़ते रहने से मोदी को जितने फायदे होंगे, अब अगर किसी भी कारण से वे रुक गए, तो उतना ही नुकसान भी होगा। इसलिए मोदी के पास पीछे मुड़कर देखने का अब कोई विकल्प नहीं बचा। वैसे भी यह एक किस्म का धर्मयुद्ध है। बल्कि असली धर्मयुद्ध यही है, जिसमें एक तरफ़ देश की वंचित आबादी है और दूसरी तरफ़ शोषण करने वालों की फौज़ है। इस लड़ाई से ही ईमानदारी और इंसानियत की जीत सुनिश्चित हो सकती है।