हे अरुण पुरी जी, सुभाष चंद्रा साहब, रजत शर्मा जी, राजीव शुक्ला जी, प्रणय रॉय साहब तथा अन्य मीडिया मालिको- आप सभी लोगों से मेरा सीधा सवाल है कि अगर आपके संपादक आपके चैनलों पर आज़म ख़ान, संगीत सोम, अकबरुद्दीन ओवैसी, असदुद्दीन ओवैसी, साक्षी महाराज और साध्वी प्राची जैसे लोगों के ज़हरीले बयान नहीं दिखाएंगे… तो क्या आप उन्हें नौकरी से निकाल देंगे?
ये जो आपके चैनलों पर ग़ैर-ज़िम्मेदाराना तरीके से उन्माद का व्यापार हो रहा है, उसके लिए आपके संपादकों के मन में बैठा नौकरी छिन जाने का डर ज़िम्मेदार है या फिर वे स्वयं ही सोच के स्तर पर दिवालिया हो चुके हैं? क्या अपने चैनलों को लोकप्रिय बनाने के ज़िम्मेदार तरीके उन्हें नही मालूम हैं? क्या आपको नहीं लगता कि आप सभी मालिकान फॉर्मूला फिल्मों की तरह फॉर्मूला चैनल चला रहे हैं?
आए दिन आपके चैनलों पर कोई न कोई सर्वे होता है। एक सर्वे इस बात का भी तो कराइए कि पब्लिक आप लोगों के बारे में क्या सोच रही है। मेरे पास तो फीडबैक यह है कि लोग मजबूरन आपके चैनल देखते ज़रूर हैं, लेकिन देखते हुए दुखी भी बहुत होते हैं… ठीक उसी तरह जैसे मजबूरी में लोग किसी न किसी उम्मीदवार या पार्टी को वोट तो दे देते हैं, लेकिन उनसे नफ़रत भी उतनी ही करते है।
हमारा कहना है कि धार्मिक कट्टरता, अंधविश्वास और अमानवीय परंपराओं पर चोट लगातार होती रहे, लेकिन नफ़रत के व्यापार को रोका जाना चाहिए। हिन्दू और मुस्लिम भारत माता की दो आंखें हैं, इसलिए इनके बीच सौहार्द्र मिटाने की कोशिश में जुटी ताकतों का पुरज़ोर विरोध होना चाहिए। इस लिहाज से क्या आपको नहीं लगता कि हमारे मीडिया को भी अधिक ज़िम्मेदार होने की ज़रूरत है?