जैसे जैसे चुनाव नजदीक आ रहा है सभी पार्टियों के नेता अपने अपने तरीके अपनी जीत सुनिश्चित करने में जुट गए हैं। धीरे धीरे इन नेताओं के बोल भी बदल रहे हैं। एक दूसरे पर आरोप तो लगते ही रहते हैं साथ ही अब लगभग सभी पार्टियां अपने कोर वोटर्स को रिझाने में जुट गई है। उत्तर प्रदेश का हाल के सालों में चुनाव इतना आसान नहीं रहा किसी भी दल के लिए। प्रदेश में लगातार और कई बार हुए सांप्रदायिक दंगे हुए और उसकी आंच चुनाव तक आई और चुनावी नतीजों तक। एक बार फिर यहां चुनाव नजदीक आते ही नेताओं के सुर बदल रहे हैं। हाजी याकूब या फिर संगीत सोम सभी अपनी ढपली अपना राग छेड़ रहे हैं। याकूब ने कहा कि बीजेपी जीती तो मस्जिदों में अजान बंद हो जाएगा वहीं संगीत सोम ने कहा कि याकूब कुरैशी आतंकवादी है।
जाट मुले जाट तय करेंगे जीत
ये सारा इलाका पश्चिमी उत्तर प्रदेश में आता है। 11 फरवरी को यहां मतदान होना है और जमीनी हकीकत पर गौर करें तो यहां उसी का डंका बजेगा जिन्हें इन इलाकों में जाटों का समर्थन होगा और वो भी खासकर मुले जाट यानी इलाके के मुस्लिम जाट। हालांकि हिंदू जाटों की यहां अच्छी खासी आबादी है। पूरे पश्चिमी प्रदेश में तकरीबन १७ फीसदी वोटर्स यहां के जाट हैं। यहां जिस भी दल का कोई नेता आता है या चाहे वो छोटा हो या कितना भी बड़ा उसकी नजर जाटों और मुले जाटों के वोट पर ही होती है।
किसान नेता महेंद्र सिंह टिकैत लंबे समय तक इलाके में जाटों का प्रतिनिधित्व करते रहे और चुनाव में अपनी छाप छोड़ते रहे। मुजफ्फरनगर, सहारनपुर, मेरठ और बागपत में बड़ी संख्या मुले जाट भी रहते हैं, उनका रुझान जिस भी पार्टी के प्रत्याशी की तरफ होता है, वही मजबूत स्थिति में होता है। मुजफ्फरनगर जिले की 6 सीटों सहित पश्चिमी उत्तर प्रदेश की 80 सीटों पर इनका असर रहता है और सभी पार्टियों की इन सीटों पर नजर है। मुजफ्फरपुर में मुजफ्फरनगर शहर, चरथावल, बुढ़ाना, खतौली, पुरकाजी और मीरापुर विधानसभा सीटें हैं। मुजफ्फरनगर में अगस्त, 2013 में हुए दंगे का दर्द झेल रहे मुले जाट आज भी उससे उबर नहीं पाए हैं। वे अपने ही शहर में शरणार्थी कैंप में गुजर-बसर कर रहे हैं। मुजफ्फरनगर दंगों की वजह से 50,000 से अधिक की आबादी को विस्थापित होना पड़ा और ये लोग तभी से समस्याओं से दो-चार हो रहे हैं।
मुजफ्फरनगर में 2013 में हुए सांप्रदायिक दंगों की तपिश अभी भी मौजूद है, जिसमें 60 से अधिक लोग मारे गए थे. दंगे के बाद पहली बार हो रहे विधानसभा चुनाव में पश्चिमी उत्तर प्रदेश का सबसे बड़ा जो सवाल है- वह है पीड़ितों को कब तक मिलेगा न्याय।
पश्चिमी उत्तर प्रदेश के इन अस्सी सीटों के रिजल्ट पूरे प्रदेश के समीकरण भी बदल सकते हैं। जिस करवट यहां के जाट बैठेंगे लगभग उसी करवट उत्तर प्रदेश की ऩई सरकार बैठेगी।