नई दिल्ली। बिहार की पृष्ठभूमि पर बनी फिल्म अनारकली ऑफ आरा एक गायिका की कहनी है। यह नाच गाना करने वाले तबके की औरत की कहानी है जिसके लिए समाज में ये सोच है कि वो सभी के लिए उपलब्ध है। लोग सोचते है कि चूंकि ये औरतें पारदर्शी कपडे पहनती है द्विअर्थी गाने गाती है इसलिए वह सबकी सम्पति है मगर ‘आरा की अनारकली’ ऐसी नहीं है। यह कहानी बिहार के आरा जिले की है जहां की सिंगर अनारकली (स्वरा भास्कर) है और उनकी मां भी गाया करती थी। बचपन में हादसे में मां की मौत होने के बाद अनारकली स्टेज पर परफॉर्म करना शुरू कर देती है।शुरूआत में तो सब ठीक रहता है, लेकिन अनारकली की मुश्किल उस वक्त शुरू होती है जब शहर के दबंग ट्रस्टी धर्मेंद्र चौहान (संजय मिश्रा) का दिल अनारकली पर आ जाता है। धर्मेंद्र चौहान की वजह से अनारकली पहले सब छोड़कर दिल्ली भागना चाहती है। अनारकली की मुश्किलें बढ़ जाती है। पहले वह इन सबसे भागने की कोशिश करती हैं लेकिन फिर वह इसका मुंह तोड़ जवाब देने का फैसला करती है। इंटरवल के बाद कहानी रफ़्तार पकड़ लेती है और फिर फिल्म का क्लाइमेक्स इस फिल्म को खास बना देता है।
फिल्म की असली यूएसवी है फिल्म के दमदार किरदार। फिल्म का सब्जेक्ट काफी सरल है और ग्राउंड लेवल की सच्चाई की तरफ इशारा करता है। फिल्म में संजय मिश्रा की बेहतरीन एक्टिंग नजर आती है और वो आपको विलेन के नाते घृणा करने पर विवश कर देते हैं। वहीं रंगीला के किरदार में पंकड मिश्रा का किरदार बेहतरीन है। स्वरा भास्कर ने अपने सिंगर के पात्र को बखूबी निभाया है । पत्रकारिता से फिल्म निर्देशन में उतरे फिल्म के डायरेक्टर अविनाश दास का यह प्रयास सराहनीय है। वो लोगों से अपनी फिल्म को जोड़ने में कामियाब रहे है।अविनाश दास की बतौर निर्देशक यह पहली फिल्म है। पहली ही फिल्म में उन्होंने बेहतरीन काम कर सबको चौंका दिया। इस फिल्म के ज़रिये उन्होंने रंगीन नाच दिखाने वाली कलाकार की बेरंग जिन्दगी की कहानी को दिखाया है।