रक्षा मंत्री मनोहर पर्रिकर को क्या हो गया है? रक्षा मंत्री बनने से पहले वे अपनी सादगी और ईमानदारी के लिए जाने जाते थे, लेकिन रक्षा मंत्री बनने के बाद से उनकी पहचान एक ऐसे बड़बोले मंत्री की बनती जा रही है, जो अपने पद की गरिमा और ज़िम्मेदारी को समझने में भी शायद भूल कर रहा है। पीओके में सेना के सर्जिकल स्ट्राइक के बाद जिस तरह से वे जगह-जगह घूमकर अपना अभिनंदन करा रहे हैं, आर्मी पर ज्ञान दे रहे हैं और उल्टे-सीधे बयान दे रहे हैं, वह रक्षा मंत्री जैसे अत्यंत महत्वपूर्ण पद के लिए बिल्कुल भी शोभनीय नहीं।
देश के रक्षा मंत्री से अपेक्षा यह की जाती है कि वे बोलें कम और काम पर अधिक ध्यान दें। जैसे, जब देश के वायु सेना अध्यक्ष एयरचीफ मार्शल अरूप राहा से सर्जिकल स्ट्राइक पर सवाल पूछा गया, तो उन्होंने कहा कि “सेना बोलने में नहीं, करने में यकीन रखती है।“ इसी तरह, मनोहर पर्रिकर भी जब तक देश के रक्षा मंत्री हैं, वे देश के सैनिकों के नेता और नीति-निर्माता हैं, इसलिए उन्हें भी बोलने की बजाय करने में अधिक यकीन रखना चाहिए।
पेड़ जब फलों से लद जाता है, तो उसकी डालियां झुक जाती हैं। जो सचमुच में ताकतवर होता है, उसे घूम-घूमकर अपने डोले-सोले और सिक्स पैक एब्स नहीं दिखाने चाहिए। यह काम अभिनेताओं को तो शोभा दे सकता है, लेकिन पर्रिकर जैसे ज़िम्मेदार पद पर बैठे देश के महत्वपूर्ण नेताओं को नहीं। उन्हें याद रखना चाहिए कि वे दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र भारत के रक्षा मंत्री हैं, न कि पिद्दी देश पाकिस्तान के, कि कहीं कुछ भी बोल दें।
मुझे पर्रिकर के पिछले कुछ बयानों से निराशा हुई है। पहले उन्होंने आगरा में अपना अभिनंदन कराया। एक सैनिक कार्रवाई के लिए देश के रक्षा मंत्री शहर के मेयर की तरह हर चौक-चौराहे पर अपना अभिनंदन कराते फिरेंगे? अब वे अहमदाबाद की एक प्राइवेट यूनिवर्सिटी में “नो योर आर्मी” पर ज्ञान देने चले गए। क्या भारत के रक्षा मंत्री को प्राइवेट यूनिवर्सिटीज़ में घूम-घूमकर आर्मी पर ज्ञान देना चाहिए? फौजियों और रिटायर्ड फौजियों को यह काम करने दीजिए न! आपके पास सचमुच इतना समय होता है क्या?
लेकिन इन सबसे भी ज्यादा जिस तरह से वे क्रेडिट लेने के खेल में उलझे हुए दिखाई देते हैं, वह छुटभैये नेताओं के लिए तो उचित है, लेकिन उन जैसे कद्दावर नेताओं के लिए नहीं। अभी कुछ दिन पहले बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह इसी बुनियाद पर तो अपना बचाव कर रहे थे कि उनकी पार्टी के किसी ‘बड़े नेता’ ने सर्जिकल स्ट्राइक पर बयानबाज़ी की हो तो बताइए। लेकिन यहां ‘बड़े नेता’ तो छोड़िए, ख़ुद रक्षा मंत्री बयानबाज़ी कर रहा है।
एक दिन उन्होंने कहा, “मैं सीधा सादा हूं, लेकिन देश की रक्षा का सवाल जब आता है, तो टेढा भी सोच सकता हूं।“ दूसरे दिन उन्होंने कहा कि “सर्जिकल स्ट्राइक का थोड़ा श्रेय मुझे भी जाता है और पूरा श्रेय प्रधानमंत्री मोदी को जाता है।“ अब अगर वे कह रहे हैं कि वे और प्रधानमंत्री सर्जिकल स्ट्राइक का कड़ा फैसला इसलिए ले पाए, क्योंकि वे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के कार्यकर्ता रहे हैं, तो निश्चित रूप से ऐसे बयान बड़बोलेपन की निशानी हैं।
पर्रिकर को यह नहीं भूलना चाहिए कि अभी सेना ने सिर्फ़ एक सर्जिकल स्ट्राइक किया है, जिसका वे इतना श्रेय ले रहे हैं। इस एक सर्जिकल स्ट्राइक से न तो हमने पाकिस्तान फतह कर लिया है, न आतंकवाद की चुनौतियाँ ख़त्म हो गयी हैं। आतंकवाद और पाकिस्तान से निपटने के लिए हमें अभी और भी बड़े व स्थायी कदम उठाने की ज़रूरत होगी। वह भी निरंतरता में और दीर्घकालीन रणनीति के साथ। न सिर्फ़ सैन्य स्तर पर, बल्कि कूटनीतिक स्तर पर भी।
आख़िरी बात कि लगातार आ रहे उनके बचकाने बयानों से दो बातें और साफ़ होती हैं। एक तो यह कि जनता के विवेक पर उन्हें भरोसा नहीं है। दूसरा, यह कि ख़ुद नरेंद्र मोदी की नसीहत से भी उन्होंने कोई सबक नहीं लिया, जिन्होंने सर्जिकल स्ट्राइक के मुद्दे पर पार्टी नेताओँ को बयानबाज़ी से बचने की हिदायत दी थी।
आप हर बात के लिए विपक्ष की आलोचना करके नहीं बच सकते। रक्षा मंत्री का काम देश की रक्षा की रणनीतियां बनाना और फैसले लेना है। पार्टी के प्रचार का काम संगठन के नेताओं और कार्यकर्ताओं का है। बात कहने-सुनने में ज़रा कड़वी है, लेकिन फिर भी कहूंगा कि अगर मनोहर पर्रिकर को पार्टी और विचारधारा के प्रचार का इतना ही शौक है तो सरकार छोड़कर संगठन में आ जाएं। फिर उनके बयानों पर हमें कोई एतराज नहीं होगा।