इस साल पहली बार हिंदी की एक कृति को बुकर पुरस्कार के लिए नामित किया गया है। हर साल इन्हीं दिनों में इस पुरस्कार के लिए नामित होने वाले दुनियाभर के लेखकों की सूची जारी की जाती है। इस बार इस सूची में भारत की गीतांजलि श्री के अनूदित उपन्यास ‘टोंब आफ सैंड’ को शामिल किया गया है। पहली बार किसी हिंदी रचना को इस सूची में स्थान मिला है।
गीतांजलि श्री का अनूदित हिंदी उपन्यास ‘टोंब आफ सैंड’ अंतर्राष्ट्रीय बुकर पुरस्कार के लिए सूचीबद्ध 13 पुस्तकों में से एक है। ‘रेत समाधि’ शीर्षक से लिखे गए मूल हिंदी उपन्यास का डेजी राकवैल ने अंग्रेजी में अनुवाद किया है। यह एक 80 वर्षीय महिला की कहानी है जो अपने पति की मृत्यु के बाद बेहद उदास रहती है। आखिरकार, वह अपने अवसाद पर काबू पाती है और विभाजन के दौरान पीछे छूट गए अतीत की कड़ियों को जोड़ने के लिए पाकिस्तान जाने का फैसला करती है।
प्रारंभिक सूची में जिन 13 उपन्यासों की घोषणा की गई है, उनमें 11 भाषाओं से अंग्रेजी में अनूदित रचनाएं शामिल की गई हैं। वे प्रविष्टियां चार महाद्वीपों के 12 देशों से हैं – जिनमें पहली बार हिंदी की रचना शामिल की गई है। निर्णायक मंडल ने गीतांजलि श्री की रचना का चयन करने की वजह बताते हुए कहा, ‘उनका भाषा प्रवाह हमें आश्चर्यजनक रूप से सहज ही 80 वर्ष की उस महिला और उसके अतीत की ओर ले जाता है।’ गीतांजलि श्री का जन्म 12 जून 1957 को उत्तर-प्रदेश के मैनपुरी में हुआ। उनकी प्रारंभिक शिक्षा यूपी के विभिन्न शहरों में हुई।
बाद में उन्होंने दिल्ली के लेडी श्रीराम कालेज से स्रातक और जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय से इतिहास में एमए किया। उन्होंने महाराज सयाजी राव विवि, वडोदरा से प्रेमचंद और उत्तर भारत के औपनिवेशिक शिक्षित वर्ग विषय पर शोध किया। कुछ दिनों तक जामिया मिल्लिया इस्लामिया में अध्यापन के बाद उन्होंने सूरत के सेंटर फार सोशल स्टडीज में पोस्ट-डाक्टरल शोध किया और वहीं रहते हुए उन्होंने साहित्य सृजन की शुरूआत की।
उनकी कहानी बेलपत्र 1987 में हंस में प्रकाशित हुई थी। उसके बाद उनकी दो और कहानियां हंस में प्रकाशित हुईं और उसके बाद यह सिलसिला चल निकला। उनकी रचनाओं में ‘माई’, ‘हमारा शहर उस बरस’, ‘तिरोहित’, ‘खाली जगह’, ‘रेत-समाधि’ (उपन्यास), ‘अनुगूंज’, ‘वैराग्य’, ‘मार्च, मां और साकूरा’, ‘यहां हाथी रहते थे’ कहानी संग्रह शामिल हैं।
गीतांजलि श्री के उपन्यास ‘माई’ का अंग्रेजी अनुवाद ‘क्रासवर्ड अवार्ड’ के लिए नामित किया गया था और अवार्ड की दौड़ में शामिल अंतिम चार किताबों में था। उनकी रचना ‘खाली जगह’ का अनुवाद अंग्रेजी, फ्रेंच और जर्मन भाषा में हो चुका है। हिंदी अकादमी ने उन्हें 2000-2001 का साहित्यकार सम्मान दिया। 1994 में उन्हें उनके कहानी संग्रह अनुगूंज के लिए यूके कथा सम्मान से सम्मानित किया गया। इसके अलावा वह इंदु शर्मा कथा सम्मान, द्विजदेव सम्मान के अलावा जापान फाउंडेशन, चार्ल्स वालेस ट्रस्ट, भारत सरकार के संस्कृति मंत्रालय से सम्मान प्राप्त कर चुकी हैं। अपनी विविध और सशक्त कृतियों से गीतांजलि श्री ने पिछले साढ़े तीन दशक में अपनी एक विशिष्ट पहचान बनाई।