विदेश मंत्री सुषमा स्वराज की सालाना प्रेस ब्रिफिंग। उन्होंने अपने सहयोगी राज्यमंत्रियों के साथ मीडिया के माध्यम से देश की जनता को विदेश मंत्रालय की उपलब्धियां बताई। फिर सवाल-जवाब का सत्र शुरु हुआ। उस वक्त मैं एक विदेश मामले कवर करने वाला जर्नलिस्ट था, और मैडम, देश विदेश मंत्री। नो मैडम, नो बच्चा। इसीलिए सीधे पूछा- 3 साल में सरकार 80 हजार संकट में फंसे भारतीयों को विदेश से लाने की बात कर रही है, ट्विटर पर आप दुनिया में प्रसिध्द हो गई, सब वाहवाही कर रहे हैं, लेकिन कृपया बताएं कि इसी रॉबिनहुड बनने की प्रक्रिया में देश के टैक्स पेयर्स का कितना पैसा लग गया? विदेश मंत्रालय बार-बार एडवायजरी जारी करता है। कहां जाएं, कहां ना जाए। फिर भी लोग नहीं रुकते..पैसा कमाने के लिए गल्फ से नाइजीरिया तक जाने कहां-कहां चले जाते हैं। सरकार की, विदेश मंत्रालय की सुनते नहीं..सफल हुए तो कोई बात नहीं, दांव उलटा पड़ा, तो सुषमाजी याद आती हैं- ट्विटर पर। फिर हमारी सरकार लगती है उस फंसे भारतीय को बचाने में…हर बार बचाव अभियान में करोड़ों खर्च होते हैं..किसी की नादानी के चलते…जैसे हाल ही में पाकिस्तान से बचा कर लाई डॉक्टर उज्मा का मामला। मालूम नहीं मोहतर्मा के कितने निकाह-तलाक हो चुके थे। मलेशिया गईं थी। एक पाकिस्तानी मुस्लिम टैक्सी ड्रॉइवर से प्यार हो गया। चली उसके साथ पाक के डेंजर जोन वाले इलाके में..फिर जो हुआ, वो आप जानते हैं…लेकिन भुगता भारत की सरकार ने..पहले ही पाक से टेंशन, उस पर देवीजी के इश्क के भूत के चलते और मुसीबत।
लेकिन मैडम तो मैडम है। पहले तो चेहरे के भाव से लगा कि गुस्सा आया है, यदि घर पर होता तो कान खिंचती…लेकिन बड़े गंभीर भाव और शब्दों में खुलासा किया- इन 80 हजार भारतीयों को बचाने के लिए हमने भारत सरकार से एक पैसा नहीं लिया। हम ऐसे बचाव अभियानों पर इंडियन कम्युनिटी वेल्फेटर फंड से पैसा खर्च करते हैं…
लेकिन फिर मैडम ने कड़े शब्दों में कहा- हमारे लिए विदेशों में फंसे भारतीयों को बचाना संवेदना का विषय है, हम इसमें पैसे नहीं देखते। कम से कम 3 साल में विदेश में बसे भारतीयों को भरोसा तो हुआ कि मुसीबत में भारत सरकार उनके साथ हैं? और मुझे उज्मा को पाकिस्तान से बचाकर लाने में गर्व है..
थैक्स मैडम, देश-दुनिया के तमाम लोगों का मुंह बंद करने के लिए। कि सरकार अपने इन रॉबिनहुड अभियानों पर टैक्सपेयर्स का पैसा उड़ा नहीं रहीं है।थैक्स..
लेकिन अब भारत सरकार को भी अपने नागरिकों को उसी गंभीरता से समझा देना चाहिए, कि जेनुइन केस हुआ तो मदद करेंगे, फालतू-फोकट में फंसोगे, तो भाड़ में जाओ..तर्ज पर…
और चुभते सवाल के लिए- हमारा काम है, हम तो पूछेंगे..मालूम नहीं बाकी साथियों के दिमाग में ये सवाल क्यों नहीं आया, जो ट्विटर को लेकर उनके बड़े कदीसे पढ़ते रहते हैं???
आमीन्