बकरीद त्योहार के दौरान अल्लाह के नाम पर मासूम जानवरों की हत्या रोकने संबंधी मीडिया सरकार की मुहिम को उल्लेखनीय समर्थन मिला है। वरिष्ठ कवि-पत्रकार और हमारे प्रतिष्ठित स्तंभकार अभिरंजन कुमार ने बकरीद के बाद ढाका और सीरिया से आई तस्वीरों से विचलित होकर एक के बाद एक- दो लेख लिखे थे, जिसमें उन्होंने धर्म की आड़ में मासूम जीव-जंतुओं की निर्मम हत्याएं करके त्योहार मनाने की प्रवृत्ति पर गंभीर सवाल खड़े किए थे।
मशहूर सामाजिक कार्यकर्ता और बंधुआ मज़दूर मुक्ति मोर्चा के संस्थापक अध्यक्ष स्वामी अग्निवेश ने मीडिया सरकार पर छपे उनके दोनों लेखों को इटली में आयोजित एक सर्वधर्म सम्मेलन में मुस्लिम विद्वानों के विचार के लिए प्रस्तुत किया, जिसके बाद कई देशों के मुस्लिम विद्वानों ने हमारी मुहिम के प्रति अपना समर्थन जताया।
प्रतिष्ठित सामाजिक कार्यकर्ताओं के व्हाट्सऐप समूह “नशामुक्ति अभियान” में इस प्रगति की जानकारी देते हुए स्वामी अग्निवेश ने लिखा- “अभिरंजन जी का हार्दिक अभिनंदन। आपके विचार आज यहां रोम में पढ़कर लेबनॉन और सऊदी के मुस्लिम विद्वानों को सुनाया, तो उन्होंने भी आपका समर्थन किया। ढाका का चित्र दिखाया तो वे शॉक्ड हो गए। धन्यवाद।”
आगे स्वामी अग्निवेश ने जानकारी दी- “शाकाहार को बढ़ावा देने के लिए जयपुर में विश्व शाकाहार सम्मेलन होगा नवंबर में।”
हम यहां साफ़ कर दें कि हम शाकाहार को बढ़ावा देकर मासूम पशु-पक्षियों की हत्या रोकने के प्रबल हिमायती हैं, लेकिन हमारे मन में अपने मांसाहारी भाइयों-बहनों या किसी धर्म-विशेष के अनुयायियों के प्रति ज़रा भी नफ़रत या द्वेष नहीं है। हम उनका हृदय परिवर्तन करते हुए, उनके भीतर ईश्वर/अल्लाह/गॉड द्वारा बनाए गए सभी जीव-जंतुओं के लिए दया-ममता जगाते हुए, इंसानियत की ख़ातिर, उन्हें शाकाहार के लिए प्रेरित करने का प्रयास करते रहेंगे।
हमारा अटल विश्वास है कि आज की तारीख में, दुनिया का कोई धर्म मासूम जीवों की हत्या का समर्थन कर ही नहीं सकता। जो समर्थन होता है, वह धर्म की विकृतियों के कारण होता है। भारत में भी बहुतायत लोग अगर अपनी अंतरात्मा की सुनेंगे, तो हमारी बात का समर्थन करेंगे, लेकिन समस्या यह है कि सांप्रदायिक और बांटने वाली राजनीतिक के चलते हर सच्ची और अच्छी बात भी उन्हें अपने ख़िलाफ़ साज़िश जैसी लगती है।
फिलहाल, नवंबर में जयपुर में आयोजित किये जा रहे विश्व शाकाहार सम्मेलन को किस तरह अधिक से अधिक सफ़ल बनाया जाए, इसके लिए आपके सुझाव आमंत्रित हैं।
नोट- जीव-हत्या के ख़िलाफ़ मीडिया सरकार पर प्रकाशित दोनों लेखों को आप यहां पढ़ सकते हैं-