पिछले छ महीने में जब से बिहार में पूरी तरह से शराबबंदी लागू हुई थी यकीन मानिए आम जनता के चेहरे खिल गए थे। बिहार की आधी आबादी के साथ साथ तकरीबन पूरी जनता ने सरकार के इस कड़े और ऐतिहासिक फैसले का स्वागत किया और जमकर साथ दिया। भले ही चोरी-छिपे शराब फिर भी मिलती रही हो लेकिन शाम ढलते बदरंग होते समाज को इससे छुटकारा मिलने लगा था। समाज के सबसे निचले तबके में शराब पीने की लत जो एक महामारी की तरह फैली हुई थी, काबू में आने लगी थी। लेकिन इन सब पर पटना हाई कोर्ट ने पानी फेर दिया। इतना ही नहीं बिहार में शराबबंदी के बाद जिस तरीके से सूबे के मुख्यमंत्री पूरे देश में घूम-घूम कर इसका क्रेडिट ले रहे थे उससे ऐसा लग रहा था कि नीतीश कुमार ने शायद आधी आबादी की कोई ऐसी नस पकड़ ली है जिसक सहारे वो अब अपनी राजनैतिक बैतरणी पार करना चाहते हैं। नीतीश कुमार के भी इस मंसूबे पर पटना हाई कोर्ट ने पानी फेर दिया। पटना उच्च न्यायालय ने शुक्रवार को बिहार सरकार को झटका देते हुए राज्य में शराब पर पूर्ण प्रतिबंध लगाने संबंधी अधिसूचना को गैर संवैधानिक करार देते हुए निरस्त कर दिया। पटना उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति इकबाल अहमद अंसारी और न्यायमूर्ति नवनीति प्रसाद सिंह की खंडपीठ ने राज्य में शराब की खपत और इसकी बिक्री पर रोक संबंधी राज्य सरकार की पांच अप्रैल की अधिसूचना निरस्त कर दी।
अदालत ने अपने फैसले में कहा कि पांच अप्रैल को जारी अधिसूचना संविधान के अनुरूप नहीं है, इसलिए यह लागू करने योग्य नहीं है।
उच्च न्यायालय ने शराबबंदी कानून को चुनौती देनेवाली ‘लिकर ट्रेड एसोसिएशन’ और कई संस्थाओं की याचिकाओं पर एकसाथ सुनवाई करने के बाद फैसला शुक्रवार तक के लिए सुरक्षित रख लिया गया था। इस कानून का रद्द होना बिहार सरकार के लिए गहरा झटका माना जा रहा है।
अदालत के इस फैसले के बाद राज्य में अब विदेशी शराब पर लगी रोक समाप्त हो गई है। हालांकि राज्य में देसी शराब पर लगे प्रतिबंध पर इस फैसले का कोई असर नहीं पड़ेगा। उल्लेखनीय है कि राज्य में नई उत्पाद नीति के अनुरूप राज्य के दोनों सदनों ने शराबबंदी विधेयक को सर्वसम्मति से पारित किया था। दोनों सदनों से पारित होने के बाद राज्यपाल रामनाथ कोविंद ने भी इस पर मुहर लगा दी थी।
बिहार विधानसभा चुनाव में प्रचार अभियान के दौरान नीतीश कुमार ने मतदाताओं से राज्य में पूर्ण शराबबंदी का वादा किया था। बिहार सरकार ने इसी वर्ष अप्रैल में राज्य में शराबबंदी लागू कर दिया था। एक अप्रैल से शराबबंदी के पहले चरण के तहत गांवों में पूर्ण रूप से शराब की बिक्री बंद कर दी गई थी, जबकि शहरी क्षेत्रों के चुनिंदा इलाकों की सरकारी दुकानों में सिर्फ विदेशी शराब बेची जा रही थी। इसके बाद पांच अप्रैल से राज्य में पूर्ण शराबबंदी लागू कर दी गई थी।
कोर्ट के इस फैसले के बाद जद (यू) के प्रदेश अध्यक्ष वशिष्ठ नारायण सिंह ने कहा कि पटना उच्च न्यायालय के फैसले से इस अभियान पर कोई खास प्रभाव नहीं पड़ेगा। उन्होंने कहा कि पार्टी अदालत के किसी भी फैसले का सम्मान करती है। उन्होंने कहा कि पार्टी का यह अभियान जारी रहेगा। यह अभियान सामाजिक परिवर्तन की शुरुआत है। साथ ही पार्टी प्रवक्ता नीरज कुमार ने कहा कि सरकार अदालत के किसी फैसले का स्वागत करती है। सरकार पूरे फैसले को देखने के बाद आगे की कानूनी प्रक्रिया के तहत काम करेगी। उन्होंने कहा कि शराबबंदी सरकार का ऐतिहासिक फैसला है।
ऐसे में जब सरकार, पार्टी और जनता चाहती है प्रदेश में शराबबंदी रहे, अदालत के इस फैसले ने कनफ्यूज कर दिया है। शराबबंदी के बाद बिहार में इसकी रोकथाम के लिए बनाए गए कानून में निस्संदेह कुछ खामियां है लेकिन शराबबंदी समाज की बेहतर बनाने की दिशा में उठाया गया कदम है।
फिलहाल अदालत ने प्रतिबंध हटा दिया है, इसलिए हम तो इतना ही कह सकते हैं न्याय का माथा ऊंचा, झूम बराबर झूम बिहारी।