इसे भगवान का चाहत तो नहीं कहा जा सकता है, निश्चित तौर पर हमारे सिस्टम की सड़ांध है, और यह हमारे उस बजबजाते समाज की देन है जिसे हमने और आपने अंधी दौड़ में महज २५-३० सालों में इस गटर तक पहुंचा दिया है। हमारे नानाजी पेशे से डॉक्टर थे और जब हम छोटे थे तो कई साल उनके साथ रहे। हमें याद है कई मरीजों का महीनों मुफ्त ईलाज किया होगा और कई बार तो दूर-दराज से आए मरीजों को ट्रेन का किराया देकर उऩको विदा करते भी देखा है। अस्सी के दशक में उनकी फीस २० रुपए थी लेकिन जिसने जो दिया वही रख लिया करते थे। अक्सर सुबह से मरीजों की कतार लगी रहती और लगभग हर मरीज के मुंह से यही कहते सुना डॉक्टर साहब तो भगवान हैं। हम कुछ ऐसी परिवेश में बड़े हुए । इसलिए हमेशा डॉक्टर को धरती पर भगवान का दर्जा दिया है। आज भी कुछेक ऐसे डॉक्टर हैं जिसमें वही संस्कार बचे हुए हैं लेकिन इऩकी तादाद इतनी कम हो गई है कि आप इन्हें लुप्तप्राय प्रजाति में निस्संकोच रख सकते हैं।
कालाहांडी की दाना मांझी की आग थमी नहीं कि बालासोर में लाश की कमर तोड़ते हम सबने देखा। वो तो फिर भी उऩके अपनों की लाश थी लेकिन आज जो कानपुर में हुआ है वो तो वाकई एक बार फिर शर्मसार करने वाली घटना है। १२ साल के बच्चे का बाप कानपुर के अस्पताल में अपने बीमार बच्चे को कांधे पर लादे इमरजेंसी वार्ड से बच्चा वार्ड और बच्चा वार्ड से डाक्टर के कमरे तक भागता रहा और इसी बीच उसका बच्चा अपने बाप के कंधे पर लाश हो गया। ईश्वर किसी को भी यह दुर्दिन न दिखाए .. यकीन मानिए इससे बड़ा बोझ और दर्द किसी भी इंसान के लिए जीवन में दूसरा कोई नहीं सकता है। यह खबर आई, सोशल मीडिया, वेब वर्ल्ड और टीवी चैनलों के जरिए हम तक पहुंची इसी बीच कानपुर की ही एक और घटना की जानकारी मिली कि कल चिंतक और पत्रकार पंकज झा की एक करीबी रिश्तेदार प्रसव के दौरान आक्सीजन की कमी से दम तोड़ गईं।
एक रोज पहले इंजीनियर और समाजसेवी मित्र फिरोज अहमद के भतीजे असद की डेंगू के कारण दिल्ली के अपोलो अस्पताल में मौत हो गई थी। फिरोज जी से बातचीत के दौरान पता चला कि ओखला के एक अस्पताल Alshifa Hospital के डॉक्टरों की लापरवाही से १७ साल के नौजवान असद की हालत इतनी बिगड़ गई कि तमाम कोशिशों के बावजूद नहीं बचाया जा सका ।
जब दिल्ली, नोएडा, कानपुर-पटना जैसे शहरों में ऐसी घटनाएं घट रही हैं तो कालाहांडी और बालासोर पर किसकी नजर जाएगी। ऐसी खबरें हम अक्सर देखते-सुनते, पढ़ते रहते हैं। लेकिन क्या हम कभी सोचते हैं कि आखिर ऐसा क्या हो गया है कि भगवान का दर्जा पाए डॉक्टर पर से आम लोगों का भरोसा टूटता जा रहा है और डॉक्टर अब पेशे से डॉक्टर नहीं पैसे से डॉक्टर होते जा रहे हैं। ऐसे डॉक्टरों से तो भगवान ही बचाए